भारतीय शेयर मार्केट की शुरुआत कब और कैसे हुई? एक ऐतिहासिक सफर
क्या आप जानते हैं कि भारत का शेयर बाजार 150 साल से भी पुराना है? चलिए, आज हम जानेंगे कि कैसे कपास के व्यापारियों की एक छोटी सी मीटिंग ने भारतीय अर्थव्यवस्था के इतिहास में एक बड़ा मोड़ ला दिया।
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भारतीय शेयर मार्केट की शुरुआत |
भारतीय शेयर बाजार की ऐतिहासिक शुरुआत
ब्रिटिश काल और 'दलालों' का दौर (1850-1875)
1800 के दशक में भारत में कपास और सूती कपड़े का व्यापार फल-फूल रहा था। मुंबई (तब बॉम्बे) के व्यापारी अक्सर टाउन हॉल के सामने इकट्ठा होकर सौदे किया करते थे। यहीं से "दलाल स्ट्रीट" नाम पड़ा—जहाँ दलाल (ब्रोकर) अपनी हाथों के इशारों से कीमतें तय करते थे। मजे की बात यह है कि उस समय कोई औपचारिक एक्सचेंज नहीं था!
एक किस्सा याद आता है: 1850 में, कपास के दाम आसमान छू रहे थे। मुंबई के एक व्यापारी प्रेमचंद रुइया ने अपने दोस्तों के साथ मिलकर एक अस्थायी एसोसिएशन बनाया था जहाँ शेयरों की खरीद-बिक्री होती थी। यही संगठन आगे चलकर BSE बना।
BSE की स्थापना: 1875 में एक बरगद के पेड़ के नीचे
आधिकारिक तौर पर, बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (BSE) की नींव 9 जुलाई 1875 को रखी गई। हैरानी की बात यह है कि इसकी पहली बैठक मुंबई के हॉर्निमन सर्कल में एक बरगद के पेड़ के नीचे हुई थी! उस समय इसे "द नेटिव शेयर एंड स्टॉक ब्रोकर्स एसोसिएशन" नाम दिया गया। 1928 में, दलाल स्ट्रीट पर भव्य इमारत बनी, जो आज भी BSE का प्रतीक है।
स्वतंत्रता के बाद का दौर: नियमों का जाल
1947 के बाद, भारत सरकार ने शेयर बाजार को रेगुलेट करने की ठानी। 1956 में सिक्योरिटीज कॉन्ट्रैक्ट्स (रेगुलेशन) एक्ट बना, जिसने BSE को देश का पहला मान्यता प्राप्त स्टॉक एक्सचेंज घोषित किया। लेकिन उस ज़माने में शेयर खरीदना आम लोगों की पहुँच से दूर था। मेरे दादाजी बताते थे कि 60 के दशक में उन्होंने अपना पहला शेयर 10 रुपये में खरीदा था—आज वह कंपनी बंद हो चुकी है!
1990 का दशक: बदलाव की हवा
Harshad Mehta स्कैम और बाजार का झटका (1992)
1992 का साल भारतीय शेयर बाजार के लिए एक झटका हो गया था। हर्षद मेहता नाम के एक दलाल ने बैंकों के प्रमुख पत्र (Bank Receipts) का गलत इस्तेमाल करके हज़ारों करोड़ रुपये का घोटाला कर दिया था । इस स्कैम के बाद सेबी (SEBI) को मजबूत बनाया गया था । पर क्या आप जानते हैं कि इस घोटाले के बावजूद, बाजार ने 1993 में 4000 पॉइंट्स का आँकड़ा छुआ था?
NSE का उदय: टेक्नोलॉजी की देन (1994)
BSE के एकाधिकार को तोड़ने के लिए 1992 में नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) की स्थापना हुई। 1994 में NSE ने इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग सिस्टम (NEAT) लॉन्च किया, जिसने पूरे गेम को बदल दिया। अब आप घर बैठे क्लिक से ट्रेड कर सकते थे! मेरे चाचा, जो 90 के दशक में ब्रोकर थे, कहते हैं कि उस वक्त स्क्रीन पर हरे-लाल नंबर्स देखकर लोगों की आँखें चौंधिया जाती थीं।
2000 के बाद: रिटेल निवेशकों का स्वर्ण युग
डिमैट अकाउंट और ऑनलाइन ट्रेडिंग
2000 में एक डिपॉजिटरी एक्ट लागू हुआ था , जिससे शेयरों का डिजिटलीकरण हुआ था । आज Zerodha, AgelOne जैसे प्लेटफॉर्म्स ने निवेश को चाय की दुकान तक पहुँचा दिया है। मेरी बहन, जो स्कूल टीचर है, अब अपने फोन से म्यूचुअल फंड्स में निवेश करती है!
कोविड और नए निवेशकों की बाढ़ (2020)
लॉकडाउन के दौरान लाखों युवाओं ने शेयर बाजार में कदम रखा। 2021 में BSE का सेंसेक्स 50,000 के पार पहुँचा। मेरे दोस्त राजू ने पहली बार Tesla के शेयर खरीदे थे—उसने मुझे रात भर WhatsApp पर चार्ट्स भेजे थे!
भारतीय शेयर बाजार का वर्तमान: कहाँ खड़े हैं हम?
आज BSE और NSE दुनिया के टॉप-10 स्टॉक एक्सचेंजों में शामिल हैं। 2023 तक, भारत में 10 करोड़ से ज़्यादा डीमैट अकाउंट्स हैं। लेकिन अभी भी केवल 4% भारतीय शेयर बाजार में निवेश करते हैं—चीन और अमेरिका से काफी पीछे।
आगे की कहानी: भारतीय शेयर बाजार की आज़ादी के बाद की असली उड़ान
जब भारत ने 1947 में आज़ादी पाई, तब देश कई मायनों में नई राह पकड़ रहा था। शेयर बाजार उस समय एक सीमित वर्ग का खेल था—अमीर व्यापारी, पुराने घराने, और कुछ गिने-चुने दलाल। लेकिन जो लोग कहते हैं कि शेयर बाजार सिर्फ पैसों का खेल है, उन्होंने शायद कभी इसकी आत्मा को महसूस नहीं किया। इस बाजार में उतार-चढ़ाव सिर्फ आंकड़ों की कहानी नहीं है, यह लोगों की उम्मीदों, डर और सपनों का एक जाल है।
आम आदमी और बाजार का रिश्ता
90 के दशक में जब हर घर में टीवी आना शुरू हुआ, तो पहली बार लोग "शेयर मार्केट" शब्द को घर की दीवारों के भीतर सुनने लगे। लोग सुबह-सुबह अखबार में Sensex की चाल देखते थे, और शाम को टीवी पर एक्सपर्ट्स की बातें सुनते थे। लेकिन फिर भी यह बाज़ार आम आदमी के लिए रहस्य ही था—जैसे कोई अनदेखा दरवाज़ा, जिसे खोलने के लिए 'जुगाड़' चाहिए।
मेरे एक पड़ोसी रामलाल चाचा थे—किराने की दुकान चलाते थे। 2003 में उन्होंने अपने एक ग्राहक से सुना कि "Infosys नाम की कंपनी तेजी से बढ़ रही है।" उन्होंने 10 शेयर खरीद लिए, बिना यह समझे कि कंपनी क्या करती है। 2015 तक वो शेयर उनके पोते की पढ़ाई का खर्च उठा चुके थे। यही बाजार की असली ताकत है—जब आप भरोसे से जुड़ते हैं, तो यह आपको आपकी सोच से कहीं आगे ले जाता है।
तकनीकी क्रांति और डिजिटलीकरण की ताकत
2005 के बाद, भारत में इंटरनेट की पहुँच ने जैसे बाजार को नई ऑक्सीजन दे दी। पहले जहाँ ब्रोकर के ऑफिस जाना जरूरी था, अब वही काम घर बैठे मोबाइल पर होने लगा। और फिर 2010 के बाद एक नाम आया—Zerodha। इसने न सिर्फ ब्रोकरों के चार्ज को खत्म किया, बल्कि शेयर बाजार को एक डिजिटल खेल बना दिया।
आज मेरी माँ भी—जो कभी मोबाइल का कैमरा तक नहीं खोलती थीं—अपने फोन पर म्यूचुअल फंड SIP चेक करती हैं। यह वही भारत है, जो कभी सोचता था कि शेयर बाजार सिर्फ बंबईवालों के लिए है।
निवेश में शिक्षा की भूमिका
हम अक्सर सुनते हैं कि "निवेश में रिस्क होता है"—पर सच ये है कि ज्ञान के बिना हर जगह रिस्क है। शेयर बाजार को समझने के लिए जरूरी है कि हम इसे 'जुए' की तरह न देखें। यह एक विज्ञान है—भावनाओं, डेटा, और धैर्य का मेल।
आज के युवा निवेश से पहले YouTube वीडियो देखते हैं, Reddit और X (Twitter) पर राय लेते हैं, और Telegram चैनल्स पर ट्रेंडिंग स्टॉक्स खोजते हैं। लेकिन साथ ही, कई बार ये सूचनाएँ भ्रम भी पैदा करती हैं। मेरे एक दोस्त ने सिर्फ एक Instagram Reel देखकर एक penny stock में 50,000 रुपये लगा दिए—कंपनी एक महीने में डूब गई।
महिलाओं की भागीदारी: एक साइलेंट क्रांति
एक दौर था जब शेयर बाजार को पुरुषों की दुनिया माना जाता था। लेकिन आज महिलाएं इस क्षेत्र में चुपचाप क्रांति कर रही हैं। चाहे वो homemaker हो या working professional, महिलाओं ने बाजार की भाषा को अपनी समझ में ढाल लिया है।
मेरी बड़ी बहन, जो बैंक में काम करती हैं, अब SIP और ETF की गहरी समझ रखती हैं। वो अक्सर अपने दोस्तों को कहती हैं, "Gold खरीदने से बेहतर है Sovereign Gold Bond लेना, ब्याज भी मिलेगा!" यह बदलाव सिर्फ आर्थिक नहीं, सामाजिक भी है। जब महिलाएं निवेश करती हैं, तो वे परिवार की आर्थिक आज़ादी में बड़ा योगदान देती हैं।
छोटे शहरों की बड़ी छलांग
पहले शेयर बाजार सिर्फ दिल्ली, मुंबई और बेंगलुरु की गली-कूचों तक सीमित था। लेकिन आज टोंक, भागलपुर, सतना, और नागरकोइल जैसे शहरों से भी लोग Zerodha या Groww जैसे ऐप पर IPO में हिस्सा ले रहे हैं।
यह बदलाव दर्शाता है कि भारत अब सिर्फ 'कंज्यूमर' नहीं, 'इन्वेस्टर' बनने की ओर बढ़ रहा है। और ये छोटे शहर ही भारत की असली ताकत हैं।
IPO का क्रेज: सपनों की सवारी
2020 के बाद IPOs का जो ट्रेंड आया, वो किसी त्योहार से कम नहीं था। Zomato, Nykaa, Paytm—हर कोई निवेश करना चाहता था। लोग WhatsApp ग्रुप पर पूछते थे, "इस बार apply किया क्या?" IPO अब सिर्फ निवेश का तरीका नहीं रहा, यह एक सामाजिक ट्रेंड बन गया।
हालांकि कई IPOs ने अच्छा रिटर्न नहीं दिया, फिर भी इसने लोगों को निवेश की भाषा सिखा दी। वो कहावत है न—"हार कर भी कुछ जीतना"—IPO बूम ने यही किया।
भारत की युवा ऊर्जा और भविष्य की उड़ान
भारत की 65% आबादी 35 साल से कम उम्र की है। यह युवा वर्ग अब सिर्फ नौकरी नहीं चाहता, वह "Wealth Creation" चाहता है। वह समझता है कि FD से जीवन नहीं बदलेगा।
मेरा एक छात्र—सिर्फ 19 साल का—हर महीने 200 रुपये से SIP करता है। वो कहता है, "मैं अमीर बनना चाहता हूँ, पर patience से।" यही सोच भारत के भविष्य की बुनियाद रख रही है।
चुनौतियाँ अभी भी बाकी हैं
जहाँ एक ओर जागरूकता बढ़ रही है, वहीं फर्जी ऐप्स, Pump & Dump स्कीमें, और influencers की गलत सलाहें लोगों को गुमराह भी कर रही हैं। कई लोग बिना कंपनी का बैलेंस शीट देखे, सिर्फ सोशल मीडिया के भरोसे निवेश करते हैं।
SEBI लगातार इन खतरों से लोगों को बचाने की कोशिश कर रहा है, लेकिन असली ताकत तो निवेशक के हाथ में है। सही जानकारी, धैर्य, और लॉन्ग टर्म दृष्टिकोण—यही असली ‘security’ है।
निष्कर्ष: भविष्य की संभावनाएँ
भारतीय शेयर बाजार की ये कहानी सिर्फ़ संख्याओं की नहीं है, बल्कि उन लाखों लोगों की है जो अपने सपनों को पंख देना चाहते हैं। आने वाले सालों में Technology, एफोर्डेबिलिटी और Financial लिटरेसी इसकी रफ्तार तय करेंगी। जैसा कि मेरे दादाजी कहते थे—"शेयर बाजार समझदारी का खेल है, जुआ नहीं!"
FAQ: पूछे जाने वाले सवाल
Q1: भारत का पहला स्टॉक एक्सचेंज कौन सा है?
BSE (बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज), जिसकी स्थापना 1875 में हुई थी।
Q2: शेयर बाजार में निवेश कैसे शुरू करें?
डीमैट अकाउंट खोलें, बुनियादी किताबें पढ़ें, और छोटी रकम से शुरुआत करें।
Q3: क्या शेयर बाजार जोखिम भरा है?
हाँ, लेकिन लंबी अवधि और रिसर्च से जोखिम कम किया जा सकता है।
Q4: SEBI का क्या रोल है?
SEBI भारतीय शेयर बाजार का नियामक है, जो निवेशकों के हितों की रक्षा करता है।
इस लेख को पढ़ने के बाद, क्यों न आप अपने पोर्टफोलियो की शुरुआत करें? याद रखें, बाजार उतार-चढ़ाव भरा है, पर सीखने का कोई विकल्प नहीं! 😊
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